2 अप्रैल 2011, ये तारीख वो तारीख है जिसे इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों में लिखा गया था । आज 2 अप्रैल को 7 साल बाद जब पीछे मुड़ के देखते हैं तो अगर कुछ नज़र आता है तो वो है बस धोनी के हाथों द्वारा लगाया गया वो छक्का जिसने ना सिर्फ भारत को विश्व कप की ट्रॉफी उठाने का मौका दिया बल्कि करोड़ो भारतीयों के सर को भी गर्व से ऊंचा कर दिया था। मुझे आज भी याद आता है वो दिन जब सब लोग अपना काम छोड़ कर बस टीवी स्क्रीन पर नज़रें गढ़ाए बैठे थे। सभी को इंतज़ार था तो बस 28 साल के सूखे के खत्म होने का। दोनो ही टीमें इससे पहले एक-एक बार विश्वकप जीत चुकी थी और इंतज़ार था दूसरे विश्वकप को अपने नाम करने का। जहां एक ओर श्रीलंका ने 1996 में ऑस्ट्रेलिया को हरा विश्वकप अपने नाम किया था, वहीं दूसरी ओर भारतीय टीम थी जिसने 28 साल पहले 1983 की जीत के बाद से ही विश्वकप की ट्रॉफी को अपने हाथों से नही उठाया था। दोनों ही टीमें बेकरार थी और तैयार भी थी एक ऐसे एतिहासिक मुकाबले के लिए जो दोनों ही टीमों के लिए बहुत महत्वपूर्ण था,
मैच की शुरुआत मैच की तरह ही काफी काफी रोमांचक रही और वो इसलिए क्योंकि विश्वकप इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा था की टॉस वाले सिक्के को 1 बार नही बल्कि 2 बार उछाला गया था, इसके पीछे का कारण मैच रेफरी जैफ क्रो का टॉस के वक्त ध्यान न देना था हालाँकि दोबारा टॉस किया गया और इस बार सिक्का श्रीलंका के पक्ष में गिरा और श्रीलंका ने पहले बल्लेबाजी करने का फैसला लिया | श्रीलंका ने टॉस जीतकर पहले बैटिंग करते हुए निर्धारित 50 ओवर में 6 विकेट खोकर 274 रन बनाए। श्रीलंका की तरफ से महेला जयवर्धने ने शतक जमाते हुए 103 रन की पारी खेली, तो कुमार संगकारा ने 48 रन बनाए। भारत की तरफ से ज़हीर खान और युवराज सिंह ने दो-दो विकेट लिए थे तो हरभजन सिंह ने भी एक बल्लेबाज़ को आउट किया था। 275 रन का पीछा करते हुए भारतीय टीम की शुरुआत काफी खराब रही। वीरेंद्र सहवाग दूसरी ही गेंद पर बिना खाता खोले मलिंगा की गेंद पर Lbw आउट हो गए ,अपना आखिरी विश्वकप खेलने उतरे क्रिकेट के मसीहा सचिन भी कुछ कमाल ना कर सके और 18 रन बनाकर मलिंगा की गेंद पर संगकारा को कैच दे बैठे। इसके बाद गौतम गंभीर ने 97 रन की गंभीर पारी खेली तो साथ ही साथ धौनी की दमदार 91 रन की पारी की बदौलत टीम इंडिया ने 10 गेंद शेष रहते ही मैच छह विकेट से जीतकर विश्व कप अपने नाम कर लिया।
विश्व कप फाइनल के इतिहास में ये पहला मौका था जब किसी टीम की तरफ से शतक लगा हो और वो टीम फाइनल मुकाबले में हार गई हो। श्रीलंका की तरफ से महेला जयवर्धने ने 103 रन बनाए थे और उनकी टीम को हार का सामना करना पड़ा था।
धोनी आज भले ही भारतीय टीम के कप्तान नहीं हैं लेकिन उनका दर्जा आज भी वही है, धोनी वो शख्सियत हैं जिन्होंने समस्त भारतवासियो के 28 साल के बोझ को अपने कन्धो पर लिया और एक जिम्मेदार इंसान की तरह उस बोझ को बड़ी ही आसानी से उतार भी दिया | 2011 के वो लम्हे आज भी जब कभी किसी भी भारतीय के सामने आ जाते हैं तो वो खुद को भावुक होने से नही रोक पाता है | आज का दिन बहुत ख़ास है.......
मैच की शुरुआत मैच की तरह ही काफी काफी रोमांचक रही और वो इसलिए क्योंकि विश्वकप इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा था की टॉस वाले सिक्के को 1 बार नही बल्कि 2 बार उछाला गया था, इसके पीछे का कारण मैच रेफरी जैफ क्रो का टॉस के वक्त ध्यान न देना था हालाँकि दोबारा टॉस किया गया और इस बार सिक्का श्रीलंका के पक्ष में गिरा और श्रीलंका ने पहले बल्लेबाजी करने का फैसला लिया | श्रीलंका ने टॉस जीतकर पहले बैटिंग करते हुए निर्धारित 50 ओवर में 6 विकेट खोकर 274 रन बनाए। श्रीलंका की तरफ से महेला जयवर्धने ने शतक जमाते हुए 103 रन की पारी खेली, तो कुमार संगकारा ने 48 रन बनाए। भारत की तरफ से ज़हीर खान और युवराज सिंह ने दो-दो विकेट लिए थे तो हरभजन सिंह ने भी एक बल्लेबाज़ को आउट किया था। 275 रन का पीछा करते हुए भारतीय टीम की शुरुआत काफी खराब रही। वीरेंद्र सहवाग दूसरी ही गेंद पर बिना खाता खोले मलिंगा की गेंद पर Lbw आउट हो गए ,अपना आखिरी विश्वकप खेलने उतरे क्रिकेट के मसीहा सचिन भी कुछ कमाल ना कर सके और 18 रन बनाकर मलिंगा की गेंद पर संगकारा को कैच दे बैठे। इसके बाद गौतम गंभीर ने 97 रन की गंभीर पारी खेली तो साथ ही साथ धौनी की दमदार 91 रन की पारी की बदौलत टीम इंडिया ने 10 गेंद शेष रहते ही मैच छह विकेट से जीतकर विश्व कप अपने नाम कर लिया।
विश्व कप फाइनल के इतिहास में ये पहला मौका था जब किसी टीम की तरफ से शतक लगा हो और वो टीम फाइनल मुकाबले में हार गई हो। श्रीलंका की तरफ से महेला जयवर्धने ने 103 रन बनाए थे और उनकी टीम को हार का सामना करना पड़ा था।
धोनी आज भले ही भारतीय टीम के कप्तान नहीं हैं लेकिन उनका दर्जा आज भी वही है, धोनी वो शख्सियत हैं जिन्होंने समस्त भारतवासियो के 28 साल के बोझ को अपने कन्धो पर लिया और एक जिम्मेदार इंसान की तरह उस बोझ को बड़ी ही आसानी से उतार भी दिया | 2011 के वो लम्हे आज भी जब कभी किसी भी भारतीय के सामने आ जाते हैं तो वो खुद को भावुक होने से नही रोक पाता है | आज का दिन बहुत ख़ास है.......
Comments
Post a Comment