आज हम एक बार फिर बुरी तरह से नाकाम हो गए, नाकाम इसलिये नही की बलात्कारीयो को सजा नही मिली बल्कि इसलिए क्योंकि हम अपने समाज को वो नही सीखा पाए जिसकी सबसे ज्यादा जरूरत है, हम अपने समाज को नही सीखा पाए कि किसी की भी इज़्ज़त करना उतना ही जरूरी है जितना गायों को इज़्ज़त देना. हम अपने समाज को नही सीखा पाए कि किसी को पूजना उतना ही जरूरी है जितना कि हम मूर्तियों की बनी देवी माँओं को पूजते हैं। हम अगर कुछ जानते हैं तो बस इतना कि हाथों में मोमबत्तियां ज्यादा जरूरी है, जुबान पर गुस्सा ज्यादा जरूरी है। ट्वीट्स बहुत जरूरी है,हर सोशल मीडिया में आक्रोश दिखाना बहुत जरूरी है और डीपी चेंज करना जरूरी है, मानो ऐसा करने से उन पीड़िताओं को इंसाफ मिल ही जाना है।
मैं खुद भी वही काम कर रहा हूँ जो सब कर रहे हैं, मुझे खुद पता है कि मेरे कुछ लिख देने से समाज मे बदलाव नही आएगा लेकिन हम लिखते इसलिए हैं ताकि हम भी जता सकें कि हाँ फ़र्क़ हमें भी पड़ा है, हमें भी बुरा लगा है, हम भी गुस्से से लबरेज़ हैं । लेकिन इस सब का क्या फायदा, क्या वाकई ये सब करने से कोई बदलाव आने वाला है? हम रोज़ ही अपने अपने फेसबुक वॉल पर कुछ देखते हैं, प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं और स्क्रॉल डाउन कर के कोई फनी वीडियो देख के हँसने लगते हैं, अगर कुछ गलत है इसमें तो बताइए, हमें फ़र्क़ पड़ता है, लेकिन शार्ट टर्म के लिए, इतना शार्ट की पल भर पहले तक हम एक रेप के दोषी को क्या क्या सजा मिलनी चाहिए कैसे उन्हें बीच सड़क पर गोली मार देनी चाहिए और ना जाने क्या क्या बातें बोल देते हैं जैसे पूरा संविधान हमारे ही हाथों में है, और दूसरे ही पल हम सेलिब्रिटी किड्स की लाइफ में क्या नया चल रहा है, क्यों अमिताभ की पोती किसी के साथ बाहर गयी, शाहरुख की बेटी मर्द दिखती है जैसी बातें करने लग जाते हैं।
ये भी हमारी नाकामी ही दर्शाती है और कुछ नही। सरकार को गरियाने से भी कुछ होने नही वाला, क्योंकि इसके जिम्मेदार हम लोग ही हैं, जो सामने दिख रहे कांड पर तो चुप्पी साध लेते हैं लेकिन जब हमारे पीछे कुछ होता है तो हम शांत नही बैठ सकते।
सरकार की बात से याद आया - “ तीन बच्चों की माँ से कोई रेप करता है भला”। ये शब्द हैं बीजेपी के माननीय एमएलए सुरेन्द्र सिंह जी के। इसमे भी गलती हमारी ही है, हम बस जाति को देख कर आंखें बंद कर के वोटिंग करते हैं, हमें फ़र्क़ नही पड़ता कि हमारे इलाके में कोई काम हो रहा है या नहीं, हमें इस बात की खुशी होती है कि अब कोई भी कांड करें “अपने नेताजी” तो हैं ही बचा ही लेंगे, हालाँकि ये हालात सबके नहीं हैं लेकिन बहुत जगह ऐसा है।
मैं और ज्यादा लिख के ज्यादा गुरु नही बनना चाहता, मैं जानता हूँ कि ये भी बस एक आर्टिकल है जिसे लोग पढ़ेंगे, मुझे गाली और शाबासी दोनो ही समान मात्रा में देंगें और अपने अपने सोशल मीडिया में स्क्रॉलिंग कर के किसी नई स्टोरी पर अपनी प्रतिक्रिया देंगे और लॉगऑउट कर के चैन से सो जाएंगे। क्योंकि हम अपनी नाकामी अपने ही हाथों से लिखते आये हैं और ये बदलने वाला नही है।
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