आज हम एक बार फिर बुरी तरह से नाकाम हो गए, नाकाम इसलिये नही की बलात्कारीयो को सजा नही मिली बल्कि इसलिए क्योंकि हम अपने समाज को वो नही सीखा पाए जिसकी सबसे ज्यादा जरूरत है, हम अपने समाज को नही सीखा पाए कि किसी की भी इज़्ज़त करना उतना ही जरूरी है जितना गायों को इज़्ज़त देना. हम अपने समाज को नही सीखा पाए कि किसी को पूजना उतना ही जरूरी है जितना कि हम मूर्तियों की बनी देवी माँओं को पूजते हैं। हम अगर कुछ जानते हैं तो बस इतना कि हाथों में मोमबत्तियां ज्यादा जरूरी है, जुबान पर गुस्सा ज्यादा जरूरी है। ट्वीट्स बहुत जरूरी है,हर सोशल मीडिया में आक्रोश दिखाना बहुत जरूरी है और डीपी चेंज करना जरूरी है, मानो ऐसा करने से उन पीड़िताओं को इंसाफ मिल ही जाना है। मैं खुद भी वही काम कर रहा हूँ जो सब कर रहे हैं, मुझे खुद पता है कि मेरे कुछ लिख देने से समाज मे बदलाव नही आएगा लेकिन हम लिखते इसलिए हैं ताकि हम भी जता सकें कि हाँ फ़र्क़ हमें भी पड़ा है, हमें भी बुरा लगा है, हम भी गुस्से से लबरेज़ हैं । लेकिन इस सब का क्या फायदा, क्या वाकई ये सब करने से कोई बदलाव आने वाला है? हम रोज़ ही अपने अपने फेस...
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