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Showing posts from April, 2018

क्या आपको भी फ़र्क़ पड़ा, लेकिन कब तक? ©

आज हम एक बार फिर बुरी तरह से नाकाम हो गए, नाकाम इसलिये नही की बलात्कारीयो को सजा नही मिली बल्कि इसलिए क्योंकि हम अपने समाज को वो नही सीखा पाए जिसकी सबसे ज्यादा जरूरत है, हम अपने समाज को नही सीखा पाए कि किसी की भी इज़्ज़त करना उतना ही जरूरी है जितना गायों को इज़्ज़त देना. हम अपने समाज को नही सीखा पाए कि किसी को पूजना उतना ही जरूरी है जितना कि हम मूर्तियों की बनी देवी माँओं को पूजते हैं। हम अगर कुछ जानते हैं तो बस इतना कि हाथों में मोमबत्तियां ज्यादा जरूरी है, जुबान पर गुस्सा ज्यादा जरूरी है। ट्वीट्स बहुत जरूरी है,हर सोशल मीडिया में आक्रोश दिखाना बहुत जरूरी है और डीपी चेंज करना जरूरी है, मानो ऐसा करने से उन पीड़िताओं को इंसाफ मिल ही जाना है।    मैं खुद भी वही काम कर रहा हूँ जो सब कर रहे हैं, मुझे खुद पता है कि मेरे कुछ लिख देने से समाज मे बदलाव नही आएगा लेकिन हम लिखते इसलिए हैं ताकि हम भी जता सकें कि हाँ फ़र्क़ हमें भी पड़ा है, हमें भी बुरा लगा है, हम भी गुस्से से लबरेज़ हैं । लेकिन इस सब का क्या फायदा, क्या वाकई ये सब करने से कोई बदलाव आने वाला है?  हम रोज़ ही अपने अपने फेस...

Are we really the people of india, as said in our constitution.

“We, The people of India”,are the initial lines of the INDIAN CONSTITUTION but i feel shame encoring these lines because there are no “we” and “Indian” left in this great land. We are Hindu and muslim, not Indian. We are touchables and untouchables, not Indian. We are higher caste and lower caste, not Indian. We are general, sc, st, obc, not indian. We are pandit, chauhan, chatriya, rajput, jaat, jatav, chamar, not indian. We are not the people of india, we are the people of our caste and our religion. We are not the people of india, we are the fuel of the indian politics. We are not the people of india, we are the people of hatred. We fight with each other, we kill each other, and still proudly says - ,”WE, THE PEOPLE OF INDIA”. No we are not…..and if conditions remains the same we never will be the people of india.

2 अप्रैल 2011:सात साल पहले की एक दास्ताँ जिसने पूरे भारत का सर गर्व से उंचा कर दिया था ©

2 अप्रैल 2011, ये तारीख वो तारीख है जिसे इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों में लिखा गया था । आज 2 अप्रैल को 7 साल बाद जब पीछे मुड़ के देखते हैं तो अगर कुछ नज़र आता है तो वो है बस धोनी के हाथों द्वारा लगाया गया वो छक्का जिसने ना सिर्फ भारत को विश्व कप की ट्रॉफी उठाने का मौका दिया बल्कि करोड़ो भारतीयों के सर को भी गर्व से ऊंचा कर दिया था। मुझे आज भी याद आता है वो दिन जब सब लोग अपना काम छोड़ कर बस टीवी स्क्रीन पर नज़रें गढ़ाए बैठे थे। सभी को इंतज़ार था तो बस 28 साल के सूखे के खत्म होने का। दोनो ही टीमें इससे पहले एक-एक बार विश्वकप जीत चुकी थी और इंतज़ार था दूसरे विश्वकप को अपने नाम करने का। जहां एक ओर श्रीलंका ने 1996 में ऑस्ट्रेलिया को हरा विश्वकप अपने नाम किया था, वहीं दूसरी ओर भारतीय टीम थी जिसने 28 साल पहले 1983 की जीत के बाद से ही विश्वकप की ट्रॉफी को अपने हाथों से नही उठाया था। दोनों ही टीमें बेकरार थी और तैयार भी थी एक ऐसे एतिहासिक मुकाबले के लिए जो दोनों ही टीमों के लिए बहुत महत्वपूर्ण था,                           ...